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प्रधानमंत्री बोले, तो बोले क्या?

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पहलगाम में आतंकी हमले के बाद पीड़ितों के आंसू पोंछने कश्मीर जाने के बजाए सीधे बिहार के मधुबनी में चुनावी सभा में जाकर आतंकवादियों को अंग्रेजी में ललकारने और उन्हें मिट्टी में मिलाने की कसम खाने वाले प्रधानमंत्री मोदी युद्ध विराम के बाद मौन है। पूरे देश में बहस चल रही है कि कूटनीति को अपनाने के बजाय युद्धनीति को अपनाने और फिर अचानक अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के दबाव में युद्धविराम करने से देश को आखिर हासिल क्या हुआ? पाकिस्तान में आतंकवादियों के 30 से ज्यादा शिविर आज भी तने हुए हैं और इस युद्ध विराम का भारत की हार के रूप में पाकिस्तान में जश्न मनाया जा रहा है। हमारी सेना के पूर्व अधिकारियों और सैन्य विशेषज्ञों के एक बड़े तबके ने इस युद्ध विराम के औचित्य पर प्रश्न चिन्ह लगाया है। इसलिए यह सवाल लाजिमी है कि इस युद्ध और युद्ध विराम से आखिर हमारे देश को हासिल क्या हुआ? पूरा देश यह जानना चाहता है और प्रधानमंत्री मौन हैं।

पाकिस्तान की संसद बोल रही है और भारत के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित कर रही है। ट्रंप बोल रहे हैं और खुलकर बोल रहे हैं कि कश्मीर के मामले में अब अमेरिका मध्यस्थता करेगा। बोल रहे है कि व्यापार रोकने की धमकी देने के बाद मोदी युद्ध विराम के लिए राजी हुए। आज या कल में संयुक्त राष्ट्रसंघ भी बोलने की तैयारी में है। पहले भी वह बोला है, पहलगाम हमले के बाद आतंकवाद के खिलाफ उसने प्रस्ताव पारित किया है, लेकिन पाकिस्तान की कारस्तानी पर वह चुप रहा है, पाक स्थित आतंकी शिविरों पर भी वह चुप रहा है। पाकिस्तान की मांग पर वह फिर से बोलने की तैयारी कर रहा है, लेकिन कितना भारत के पक्ष में बोलेगा, यह भारत को भी नहीं मालूम। लेकिन सब बोल रहे हैं और बात-बात पर बोलने वाले, अपनी छप्पन इंची छाती दिखाने वाले, पाकिस्तान को घर में घुसकर मारने वाले प्रधानमंत्री की बोलती बंद है। वे मौन हैं।

विपक्ष का आरोप है कि युद्ध विराम से जुड़े तमाम मुद्दों पर बड़बोले मोदी चुप है। यह सही है कि वे बोलना भी जानते हैं और चुप रहना भी। लेकिन उनके चारों ओर जो आभामंडल है, उसके कारण उन्हें यह नहीं मालूम कि कब बोलना है और कब चुप रहना है। प्रायः बोलने के समय वे चुप रहते हैं और चुप रहने के समय बड़बोलेपन की हद तक जाकर बोलते हैं। इससे उनको, उनकी पार्टी को और संघ परिवार, जिससे वे बचपन से खाकी पैंट पहनकर जुड़े हैं, सबको नुकसान पहुंचता है। भले ही वे अपने व्यक्तिगत नुकसान की परवाह न करें, लेकिन पार्टी और अपने परिवारजनों के नुकसान की परवाह तो उन्हें करनी ही चाहिए। वैसे ही उनके संस्कार सर्वे भवन्तु सुखिन: से जुड़े हैं, इस नाते तो कदापि इस नुकसान की उन्हें उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।

बहुत देर बाद उनका मौन टूटा कल रात टीवी पर 8 बजे। रात 8 बजे का समय लोगों को बहुत कंपाता है। रात 8 बजे ही नोटबंदी हुई थी। रात 8 बजे ही देशबंदी भी की गई है। दोनों बंदियों के दुष्परिणाम देश आज भी झेल रहा है। देश की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हुई थी और हजारों लोग मारे गए थे। हां, दोनों बंदियों में भी कुछ लोगों की चांदी जरूर हुई। इसलिए, पूरा देश सांस रोककर प्रधानमंत्री को सुनने को आतुर था, क्योंकि वे अपना मौन व्रत तोड़ रहे थे।

सो, कल रात 8 बजे प्रधानमंत्री टीवी पर नमूदार हुए और बोले। लेकिन बोले वही घिसा-पिटा। उनके भाषण में नया क्या था, शायद उन्हें खुद नहीं मालूम होगा। शायद कुछ नया बोलने का निर्देश ट्रंप से मिला नहीं था। मिलता, तो शायद इतना नीरस-राग नहीं गाते। सेना के शौर्य का बखान था, जो होना ही था। लेकिन कश्मीरियों के उस शौर्य पर मौन ही रहे, जिसके कारण कई पर्यटकों की जान बची। आतंकवाद के खिलाफ गरजे-बरसे, बरसना ही था। लेकिन कश्मीर की उस हिंदू-मुस्लिम एकता पर उनके पास दो शब्द भी नहीं थे, जो आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता के साथ तनकर खड़ी हुई है, भले ही उनके सीनों की माप 56 इंच की न हो। सैनिकों की शहादत को श्रद्धांजलि दी, देना ही था। लेकिन दोनों ओर की लड़ाई में हमारी सीमा पर जो 20 से ज्यादा भारतीय मारे गए, उनके लिए दो बूंद आंसू भी उनकी आंखों से नहीं टपके। संकट की घड़ी में देश के एक होने की बात कही, कहना ही था। लेकिन पहलगाम की आतंकी घटना के बाद पूरे देश में मुस्लिम समुदाय को लक्ष्य करके जो घृणा अभियान चलाया गया, उसकी निंदा करने के लिए दो शब्द तक उनके पास नहीं थे। सभी जानते हैं कि इस अभियान की अगुआई उनके अपने परिवार के लोग ही कर रहे थे। अपने भाषण में उन्होंने आतंक की आग में खुद पाकिस्तान के जलकर खत्म होने की चेतावनी दी। यह चेतावनी कब सही होगी, यह बाद की बात है, लेकिन नफरत की इस आग में उनके अपने परिवार के लोग ही चपेट में आ रहे हैं, शायद इस बात को उन्होंने भूलना ही बेहतर समझा होगा। संघ के प्रति झुकाव रखने वाले जनसत्ता के संपादक राहुल देव की बेटी राष्ट्रवादी सनातनी देशभक्तों की अश्लील निगाहों और टिप्पणियों की शिकार हुई है। अभी हाल ही में, युद्ध विराम के बाद सरकार का पक्ष रखने के अपराध में विदेश सचिव ही संघी गिरोह की ट्रोलिंग का शिकार हुए हैं। ये दोनों मामले नए हैं, लेकिन पुराने मामले भी हजारों में हैं। मोदी इस पर भी मौन हैं।

टीवी पर मोदी बोले, लेकिन उनका मौन ही मुखर था। देश को जानना चाहता था, देश जो उनके श्रीमुख से सुनना चाहता था, उस पर मोदी कुछ नहीं बोले। युद्ध विराम क्यों और कैसे हुआ, किसके दबाव में हुआ, जबकि हमारी सेना आतंकी शिविरों को ध्वस्त करते हुए आगे बढ़ रही थी, इस पर मोदी कुछ नहीं बोले। इस युद्ध विराम में अमेरिका की क्या भूमिका थी, कश्मीर पर उसकी चौधराहट पर मोदी को न कुछ बोलना था, न बोले। युद्ध विराम के बाद देश में जो असंतोष पैदा हो रहा है, उस पर पानी छिड़कने के लिए उन्हें कुछ बोलना था, सो वे कुछ बोले। लेकिन जो बोले, उसमें ऐसा कुछ नहीं था, जो देश को आश्वस्ति दे सके कि भविष्य में हमारे देश पर कभी आतंकी हमले नहीं होंगे और यह हमला अंतिम था।

टीवी पर वैसे ही बोले, जैसे अपने मन की बात हर माह बोलते हैं और जनता के मन की बात सुनने से परहेज करते हैं। कल टीवी पर उनका बोलना असामयिक था और जो बोले, वह अप्रासंगिक भी था। इस गलती को सुधारने का एक ही तरीका है कि संसद का विशेष सत्र बुलाए और खूब बोले, खुलकर बोले, ताकि भ्रम का कुहासा दूर हो। मोदी राज के नागरिक होने के नाते अल्लाह, गॉड और भगवान से यही प्रार्थना कर सकते हैं कि उन्हें सद्बुद्धि मिले और कुछ न छुपाते हुए बोले। पूंछ में पाकिस्तान ने मस्जिदों पर हमले करके उन्हें तबाह किया है, जिसे टीवी पर अपने बोलने में छुपाया। संसद में वे इतना-सा भी न छुपाए। बाकी रामजी तो जैसे उनके साथ है, वैसे सबके साथ है। श्रीराम मोदी का भी भला करें, योगी का भी करें और सभी परिवारजनों का भी करें, इस पर हमें कोई आपत्ति नहीं।

वैसे यह कहावत सभी जानते-मानते हैं : कर भला, होगा भला। किसी का बुरा हम तो चाहते नहीं। पाकिस्तानी जनता का भी बुरा नहीं चाहते, क्योंकि हमारी लड़ाई उनसे नहीं है। हमारी लड़ाई तो आतंकियों से है। हमारी लड़ाई सरकार से भी नहीं है, टीवी पर मोदीजी बता चुके हैं। इसलिए नहीं है कि पाक सरकार तो वैसे भी आतंकियों की कठपुतली है। इस दुनिया में सबसे बड़ा आतंकवादी अमेरिका है। सब जानते हैं। हमारी सरकार भी जानती है। जब हम अमेरिका का ही कुछ नहीं उखाड़ सकते, तो बेचारे पाक आतंकियों के ही समूचे टैंट उखाड़ने के पीछे क्यों पड़े! जितने उखाड़े, उतने काफी है। जितने बचे, उसको भी उखाड़ेंगे, लेकिन कोई दूसरा हमला तो होने दो। शिवाजी और महाराणा प्रताप के वंशज हैं, दुश्मनों के दांत खट्टे कर देंगे, फिर से उनके घर में घुसकर उनको मारेंगे, छोड़ेंगे नहीं। वैसे ही, जैसे कोई छोटा बच्चा खेल-खेल में दूसरे बच्चे को मारता है। लेकिन वीरता के इस रस का बखान मोदीजी को संसद में करना चाहिए, ताकि विपक्षियों की घिग्घी बंध जाएं और फिर से मोदी-मोदी के पूरे देश में जयकारे लगे।

देश वह सब जानना-सुनना चाहता है, जिसे अभी तक उससे छिपाया जा रहा है। वह सेना के अधिकारियों से सरकारी पक्ष सुनना नहीं चाहता, अपने राजनैतिक नेतृत्व के श्रीमुख से सुनना चाहता है कि आतंकवाद का मामला अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बनने की जगह, कश्मीर का द्विपक्षीय मामला अंतर्राष्ट्रीय मामला कैसे बन रहा है और हमारा राजनैतिक नेतृत्व इसमें ट्रंप को अपनी नाक घुसेड़ते की इजाजत क्यों दे रहा है?

इन सब बातों पर विचार करने की सही जगह संसद है। संसद में बोलते हुए प्रधानमंत्री को देश की जनता सुनना चाहती है। इसलिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की विपक्ष की मांग जनता की मांग है। इस मांग को ठुकराने का मतलब है, देश की जनता और लोकतंत्र के प्रति हिकारत का प्रदर्शन। देखना यही है कि मोदी के हिंदुत्व-कॉर्पोरेट राज की तानाशाही में अब लोकतंत्र के प्रति न्यूनतम सम्मान बचा भी है या नहीं? देखना यही है कि वे टीवी को बड़ा समझते हैं या संसद को??

*(आलेख : संजय पराते)*
*(लेखक अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं। संपर्क : 94242-31650)*

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