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कृषि का निगमीकरण करने की मोदी-अडानी-नीति आयोग की परियोजना का खुलासा : किसान सभा ने की संयुक्त संसदीय समिति से जांच की मांग

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✒️नवी दिल्ली(पुरोगामी न्युज नेटवर्क)

नई दिल्ली(दि.21ऑगस्ट):-‘द रिपोर्टर्स कलेक्टिव’ की शोध-रिपोर्ट के आधार पर अखिल भारतीय किसान सभा ने आरोप लगाया है कि पिछले वर्ष जिन किसान विरोधी कठोर कृषि कानूनों को मोदी सरकार ने संसद से पारित कराया था, वे कानून एक भाजपाई एनआरआई मित्र शरद मराठे और अडानी तथा कॉर्पोरेट पूंजीपतियों के कहने पर बनाये गए थे तथा कानून बनाने की सभी स्थापित प्रक्रियाओं को नष्ट करके बनाये गए थे। किसान सभा ने मोदी सरकार की कॉरपोरेटों के साथ इस मिलीभगत की एक संयुक्त संसदीय समिति से जांच कराने की मांग की है।

अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष अशोक ढवले तथा महासचिव विजू कृष्णन ने नई दिल्ली से जारी एक बयान में कहा है कि ‘द रिपोर्टर्स कलेक्टिव’ की दो भागों की इस खोजी रिपोर्ट ने भारतीय कृषि का निगमीकरण करके भारतीय किसानों और उपभोक्ताओं को लूटने के लिए मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार, नीति आयोग और अडानी के नेतृत्व वाले प्रमुख कॉरपोरेट पूंजीपतियों की भयावह सांठगांठ और एक बड़ी परियोजना को उजागर किया है। यह रिपोर्ट दस्तावेजी साक्ष्यों के साथ भारतीय कृषि को कॉर्पोरेटपरस्त बनाने के लिए कॉर्पोरेट-मोदी शासन की मिलीभगत को स्पष्ट रूप से स्थापित करती है।

उल्लेखनीय है कि ‘द रिपोर्टर्स कलेक्टिव’ ने जो रिपोर्ट जारी की है, उसमें विस्तार से बताया गया है कि भारतीय कृषि को कॉर्पोरेट शैली में ढालने का विचार, “जिसमें किसान कृषि व्यवसायी कंपनियों को अपनी कृषि भूमि पट्टे पर देंगे और उनके मातहत काम करेंगे”, मूल रूप से भाजपाई समर्थक एनआरआई शरद मराठे का था, जिस पर अमल के लिए मोदी सरकार ने वर्ष 2018 में नीति आयोग से जुड़े अशोक दलवई के नेतृत्व में एक विशेष कार्य बल का गठन किया था। इस एसटीएफ की कॉर्पोरेट समर्थक सिफ़ारिशों ने ही तीन कठोर कृषि कानूनों को आकार देने में प्रमुख भूमिका निभाई थी। इस रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि अडानी समूह ने अप्रैल 2018 में नीति आयोग से आधिकारिक रूप से, जमाखोरी रोकने के उद्देश्य से बनाये गए आवश्यक वस्तु अधिनियम को निरस्त करने की मांग की थी। कृषि कानूनों का मसौदा तैयार करते समय अडानी समूह की इस मांग को भी वफादारी से शामिल किया गया था।

किसान सभा के राष्ट्रीय नेताओं ने कहा है कि इस रिपोर्ट से यह साबित होता है कि संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के नेतृत्व में ऐतिहासिक संयुक्त किसान आंदोलन अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूंजी और एकाधिकार पूंजी के गठबंधन और भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और उनके पोस्टर बॉय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक देशभक्तिपूर्ण संघर्ष था। अपने बयान में उन्होंने कहा है कि 380 दिनों तक चले ऐतिहासिक किसान संघर्ष में 735 किसानों की सोची-समझी हत्याओं (शहादत) के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके परजीवी पूंजीपति मित्र सीधे-सीधे जिम्मेदार हैं।

अखिल भारतीय किसान सभा ने मांग की है कि यह जांच करने के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया जाए कि कैसे बड़े व्यापारिक घरानों और उनके एनआरआई सहयोगियों ने सरकार की सभी स्थापित प्रक्रियाओं को नष्ट करने की साजिश रची और किसान विरोधी कठोर कृषि कानूनों को आगे बढ़ाया।

पत्रकारिता के क्षेत्र में इस महत्वपूर्ण हस्तक्षेप के लिए *’द रिपोर्टर्स कलेक्टिव’*की सराहना करते हुए किसान सभा ने मोदी शासन को भारतीय कृषि के कॉरपोरेटीकरण के सभी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रयासों से दूर रहने या फिर किसानों के एकजुट प्रतिरोध का सामना करने की चेतावनी दी है।

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