




(स्वामी क्रियानन्द जी जयन्ति विशेष)
आनन्द संघ की स्थापना सन 1968 में स्वामी क्रियानन्द जी- परमहंस योगानन्द जी के परम शिष्यने की थी। परमहंस योगानन्द जी प्रभु इसा मसीहा से प्रारंभ हुए आत्म-गुरुत्व के पंक्ती में से आखरी थे। वे पश्चिम क्षेत्र में योगा पढ़ाने वाले पहले महान गुरु थे। वे सन 1920 में भारत से अमरिका में आये और अंत तक ठहरे हुये थे। प्रभु इसा मसीहा के चित्र आनन्द संघ के तख्त पर क्यो है? आनन्द जी के गुरू का एवं मसीहा के कुल का क्या सम्बंध है? वे सिर्फ प्रभु के पुत्र ही थे क्या? वे अस्सल में कौन थे? वे तो गुरु परमहंस जी थे, जिन्हें बाबा जी-कृष्णा कहकर भी पुकारा करते थे। उन्होंने क्रिया योगा के प्राचीन विज्ञान मानवता में उतारा था। क्योंकि परमहंस योगानन्द जी के विचार से अंधेरा युग में- कली युग में यह पवित्र ज्ञान धिमा चल रहा था। लाहिरी जी महाशय उनके शिष्य थे; जिन्होंने क्रिया योगा के प्राचीन विज्ञान केवल जग से अलविदा हुये साधुओं को ही नही, बल्कि सभी निष्ठावान भक्त मंडली को भी उपलब्ध किया था। श्री युक्तेश्वर जी भी लाहिरी जी महाशय के शिष्य थे। भारत के सेरामपुर शहर के स्वामी श्री युक्तेश्वर जी भी परमहंस योगानन्द जी के गुरु थे। उन्होंने योगानन्द जी को अपने पाश्चात्त्य देशों में महान कार्य करने हेतु प्रशिक्षित किया था।
स्वामी क्रियानन्द जी ने कुल 400 संगीतों को रचा था, जिनके माध्यम से ऊँची चेतना की अभिव्यंजना हो सके। सुनने वाले अधिकतर पातें है कि, वे प्रत्यक्ष रूप से आत्मबोध की शिक्षा को अपनी ऊँची चेतना में ग्रहण कर रहें हैं। जीवन के उत्तरकालीन दिन एक आंतरिक बुलावे के कारण सन 2003 में स्वामी जी भारत आए, आत्मबोध की शिक्षाओं का परमहंस योगानन्द जी के जन्मभूमि में प्रचार करने के लिए। सन 2009 में अपने गुरु के इस नए युग द्वापर में संन्यास के स्पष्टिकरण से प्रेरित हो, स्वामी क्रियानन्द जी ने नया स्वामी की सभा को स्थापित किया। यह सभा सकारात्मक संन्यास पर ध्यान देती हैं और औपचारिक संन्यास का दरवाज़ा हर पथ के आध्यात्मिक जिज्ञासु के लिए खोलती है, चाहे वो गृहस्थ हो या ब्रह्मचारी।
स्वामी क्रियानन्द जी का जन्म भारत में दि.19 मई 1926 को हुआ था। वे परमहंस योगानन्द जी के प्रत्यक्ष शिष्य और आनन्द संघ के संस्थापक थे। उनकी सत्य के लिए गहरी तलाश ने उन्हें सन 1948 में 22 वर्ष की कम उम्र में परमहंस जी की प्रतिष्ठित आध्यात्मिक किताब “एक योगी की आत्मकथा” को पढ़ने की प्रेरणा दी गई। शीघ्र ही उन्होंने उसके लेखक को अपना गुरु पहचान लिया और जवान क्रियानन्द जी ने निश्चय किया कि, वे अपना जीवन परमहंस जी की शिक्षाओं का अभ्यास और उनका प्रचार करने में समर्पित करेंगे। उनकी पहली भेंट पर ही परमहंस योगानंद जी ने उनको अपना शिष्य स्वीकार किया। फिर स्वामी क्रियानन्द जी ने परमहंस जी के साथ जीवन बिताया, परमहंस योगानन्द जी की सन 1952 में समाधी तक। गुरु जी ने शीघ्र ही क्रियानन्द जी को कई सारीं जिम्मेदारियाँ सौंपी। परमहंस जी ने स्वामी जी के साथ कई घंटों भर बिताये, उनकी समझ का मार्ग दर्शन करने के लिए और उनके भविष्य में आने वाले महान कार्य के लिए निर्देश दिए। गुरु योगानन्द जी उनसे अक्सर कहते थे, “तुम्हे एक महान कार्य करना है।”
स्वामी क्रियानन्द जी ने सन 1968 में आनन्द संघ की स्थापना की। यह स्थापना अपने गुरु के विश्वव्यापी भाईचारा समुदाय की दृष्टि को हकीकत बनाने के लिए की थी। इन आध्यात्मिक समुदायों में आध्यात्मिक जीवन में रूचि रखने वाले लोग, चाहे गृहस्थ हों या सन्यासी, सब साथ में रह सकें और घर, प्रार्थना स्थल, विद्यालय, दफ्तर एक जगह हों; सभी एक दूसरे के आध्यात्मिक सफर में सहायता करें, सरल जीवन जीयें और ऊँचे सोच के रहें। आज यह आनन्द संघ एक विश्वव्यापी आंदोलन है जोकि अनेको देशों में है और कई हज़ारों लोगो को मदद करता है; समुदायों, ध्यान मंडलियों और इंटरनेट पर दी गयीं प्रस्तुतियों के द्वारा। साथ बिताये समय में परमहंस जी अपने इन शिष्य से कहते थे, “तुम्हारा कार्य लेखन, सम्पादन और भाषण देना है।” उन्होंने अपने गुरु की शिक्षाओं पर हज़ारों भाषण दिए और एक सौ चालिस से अधिक किताबें लिखीं। यह दर्शाने के लिए कि, कैसे गुरु जी की शिक्षाएँ जीवन के हर पहलू को आध्यात्मिक बना सकतीं हैं।
लाखों आध्यात्मिक जिज्ञासु जिन्होंने स्वामी क्रियानन्द जी के महान, अपने गुरु की भक्ति में किया कार्य, से उठान और आध्यात्मिक शक्ति को महसूस किया। उनके लेखन, संगतों, सत्संगों, दिव्य दोस्ती और शिष्य के उदाहरण से वह सभ लोग उनकी विरासत हैं। स्वामी क्रियानन्द जी दि.21 अप्रैल 2013 में 86 वर्ष की उम्र में इस दुनिया से गुज़र गए। परमहंस योगानंद जी ने उनसे कहा था, “इस जीवन के अंत में ईश्वर से तुम्हारी भेंट होगी।” स्वामी जी का शरीर आनन्द संघ के अमरीका के समुदाय में है, जहाँ उनका महान कार्य शुरू हुआ था। एक सुन्दर प्रार्थना स्थल में जिसको आभारी भक्तों ने बनाया है। इस प्रार्थना स्थल का नाम है मोक्ष मंदिर और इस पर योगानंद जी की कविता समाधी की आखरी पंक्ति अंकित है-
”हास्य का एक छोटा सा बुलबुला मैं,
स्वयं आनन्द का सागर बन गया हूँ।”
!! स्वामी क्रियानन्द जी जयन्ती के उपलक्ष्य में उन्हें विनम्र अभिवादन !!
✒️सन्त चरनधुलि:-श्री कृष्णकुमार गोविन्दा निकोडे गुरूजी- अलककार(भारतीय सन्त-महापुरुषों के जीवनचरित के अभ्यासक)गढ़चिरौली,व्हा. नं.9423714883.
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